विगत 14 सालों से स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार देश और प्रदेश की सरकार द्वारा देश हित की जन उपयोगी नीतियों तथा जनसमस्याओं से संबंधित खबरों को अपने दैनिक अखबार, साप्ताहिक अखबार, मासिक पत्रिका, ऑनलाइन चैनल, मोबाइल एप्लीकेशन, तथा लाइव वेबसाइट के माध्यम से लगातार हमारे कई करोड़ दर्शकों तथा आम जनता के लिए लगातार प्रकाशित और प्रसारित कर रहा है । राजधानी लखनऊ तथा सीतापुर से प्रकाशित ऑनलाइन के माध्यम से दुनिया के दो शतक से ज्यादा देशों में स्वतंत्र प्रभात के दर्शक मौजूद हैं जिनके लिए हमारी पूरी टीम पूरी जिम्मेदारी से कार्य कर रही है ।
हम सभी लोग आने वाले समय में आम जनता के लिए जन समस्याओं पर और तेजी से काम करेंगे । सीमित संसाधन के साथ उत्कृष्ट काम करने तथा आम जनमानस की आवाज बुलंद करने के विचार को लेकर तेजी से आगे बढ़ाने के प्रयास को और मजबूत करने तथा देश के चौथे स्तंभ को मजबूती प्रदान करने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है । अतः आपसे अनुरोध है कि इस समाचार पत्र, वेब साइट या पत्रिका में आप भी यथासंभव सहयोग प्रदान करके हमें स्वतंत्र एवं निर्भीक पत्रकारिता के पथ पर आगे चलने हेतु आशीर्वाद प्रदान करने की कृपा करें ।
राजनीति,पैसा,अव्यवस्थित मीडिया टारगेट रेटिंग प्वाइंट (TRP ) और पसंद (LIKE ) की भाग दौर मे पीछे चली जा रही जनता से जुड़ी समस्याए क्या कही और पीछे तो नही जा रही है? क्या पत्रकारो की आज़ादी की लड़ाई मे जो भूमिका थी क्या आज उसका कुछ प्रतिशत आज भी मौजूद है? क्या हम जो समाचार पत्रो और टीवी चैनलों पर सही खबर देख या पढ़ पा रहे है? क्या इन खबरो का एक आम आदमी या देश की जनता से कोई सरोकार है? क्या हमारे देश मे किसान,जवान,अंतिम ग़रीब ब्यक्ति का इन मध्यमो से बिना टारगेट रेटिंग प्वाइंट (TRP) पसंद (LIKE) को नज़र मे रखकर दिखाया जा रहा है? और अगर नही तो अब परिवर्तन का समय आ चुका है कि हमे ऐसे साधन की तलाश करनी होगी जहाँ पर सामूहिक रूप से चर्चा करने का समय आ गया है समय परिवर्तन का है तो हमे बहुत ही सूझ-बूझ से समाज और राष्ट्रीय हित मे अपने स्वतंत्र विचार को आगे लाना ही होगा ये क्यों हो रहा है? मीडिया की विश्वसनीयता लोकतंत्र की प्रगति के साथ मजबूत शक के दायरे में है? मीडिया और लोकतंत्र के अन्य संस्थानों के बीच सामंजस्य दूरी के विकास और सकारात्मकता के नाम पर समझौता किया गया है।
अस्सी के दशक के दौरान, वहाँ महान संपादकों के बीच मजबूत बहस है कि क्या मीडिया एक मिशन या पेशे होना चाहिए थे? नब्बे के दशक में, बहस है कि एक अलग मोड़ ले लिया है कि क्या मीडिया होना चाहिए धर्मनिरपेक्ष या तथाकथित सांस्कृतिक राष्ट्रवादी और हिंदुत्व उन्मुख? इसके साथ ही उच्च जाति के पूर्वाग्रह और अन्य पिछड़ा वर्ग और दलित आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व के बहस भी विभिन्न स्तरों पर उभरा। मीडिया भी उदारीकरण बहस का हिस्सा जो मीडिया की क्षमता और प्राथमिकताओं को एक नया आयाम दिया बन गया। लघु यदि आपात मीडिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी और यह मीडिया कार्रवाई की भावी दिशा के आकार में, नब्बे के दशक में यह पहले मंडल, मंदिर और वैश्वीकरण के रूप में महान मंथन अंक फेंक दिया। इक्कीसवीं सदी बड़ी उम्मीद के साथ और बीसवीं सदी विचारधाराओं की न्यूनतम हैंग ओवर के साथ पहुंचे।
वास्तव में, हम विचारधाराओं, इतिहास का अंत और सभ्यता के उभरते हुए टकराव के अंत में देखा जाता है और अंत में नई विश्व व्यवस्था का रीमेक बनाने की है। इक्कीसवीं सदी में, मीडिया क्रोनी कैपिटलिज्म, सांप्रदायि
लेकिन हम नागरिकों को सच्चाई का पता करने के लिए हर अधिकार है। हम या तो पढ़ने या सुनने का भुगतान अलग-अलग रूपों में खबर या हम पाठक या दर्शक के रूप में निजी संधियों कार्पोरेट मीडिया द्वारा किए गए कार्य का शिकार सभी मीडिया पत्रकारों के लिए एक आंदोलन और यह भी एक स्वच्छ मीडिया अभियान, "पैसे, राजनीतिक शक्ति के चंगुल से मीडिया की रक्षा और एक पूरी तरह से स्वतंत्र मीडिया है जो लोगों के साथ है, लोगों द्वारा और लोगों के लिए स्थापित करना।"सभी तरह के मीडिया के लोग आज अपनी असुभिधाओ के चलते अपनी बात रखने मे फैल हो रहे है जिसके लिए अब हमे एक साथ आकर समाज और जनता के अधिकारो को ध्यान मे रखते हुए उसी काम को करना है जिसके लिए वास्तव मे मीडीया को अपनी भूमिका समझनी होगी ।
हम आप सभी दर्शको से ये अपील करना चाहते है कि आपको अब मीडिया के ऐसे साधन कि तलाश करनी है जो असल में निष्पक्ष और आम जनता से सरोकार रखने वाले मंसूबे और आदर्शो पर कार्य करने वाली ब्यवस्था को चुनकर उनका समर्थन करना होगा जिससे परिवर्तन के इस दौर में हम आने वाले समाज को एक नयी ब्यवस्था दे सके l
हमारे बारे में